आज़ादियाँ - उड़ान (2010)
फिल्म : उड़ान
संगीतकार : अमित त्रिवेदी
गीतकार : अमिताभ भट्टाचार्य
गायक : अमित त्रिवेदी, न्यूमन पिंटो, निखिल डिसूज़ा और अमिताभ भट्टाचार्य
पैरों की बेड़ियाँ ख़्वाबों को बांधे नहीं रे
कभी नहीं रे
मिट्टी की परतों को नन्हे से अंकुर भी चीरे
धीरे धीरे
इरादे हरे भरे, जिनके सीनों में घर करे
वो दिल की सुने, करे
ना डरे, ना डरे
सुबह की किरणों को रोके जो सलाखें हैं कहाँ
जो ख़्यालों पे पहरे डाले वो आँखें हैं कहाँ
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़के चूमेंगे
आसमान, आसमान, आसमान ...
सुबह की किरणों को रोके जो सलाखें हैं कहाँ
जो ख़्यालों पे पहरे डाले वो आँखें हैं कहाँ
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़के चूमेंगे
आसमान, आसमान, आसमान ...
आज़ादियाँ, आज़ादियाँ, आगे ना कभी मिले, मिले, मिले
आज़ादियाँ, आज़ादियाँ, जो छीने वही जी ले, जी ले, जी ले
सुबह की किरणों को रोके जो सलाखें हैं कहाँ
जो ख़्यालों पे पहरे डाले वो आँखें हैं कहाँ
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़के चूमेंगे
आसमान, आसमान, आसमान ...
सुबह की किरणों को रोके जो सलाखें हैं कहाँ
जो ख़्यालों पे पहरे डाले वो आँखें हैं कहाँ
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़के चूमेंगे
आसमान, आसमान, आसमान ...
कहानी ख़त्म है, या शुरुआत होने को है
सुबह नयी है ये, या फिर रात होने को है
कहानी ख़त्म है, या शुरुआत होने को है
सुबह नयी है ये, या फिर रात होने को है
आने वाला वक़्त देगा पनाहें, या फिर से मिलेंगे दोराहे
ख़बर क्या... क्या पता...
संगीतकार : अमित त्रिवेदी
गीतकार : अमिताभ भट्टाचार्य
गायक : अमित त्रिवेदी, न्यूमन पिंटो, निखिल डिसूज़ा और अमिताभ भट्टाचार्य
पैरों की बेड़ियाँ ख़्वाबों को बांधे नहीं रे
कभी नहीं रे
मिट्टी की परतों को नन्हे से अंकुर भी चीरे
धीरे धीरे
इरादे हरे भरे, जिनके सीनों में घर करे
वो दिल की सुने, करे
ना डरे, ना डरे
सुबह की किरणों को रोके जो सलाखें हैं कहाँ
जो ख़्यालों पे पहरे डाले वो आँखें हैं कहाँ
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़के चूमेंगे
आसमान, आसमान, आसमान ...
सुबह की किरणों को रोके जो सलाखें हैं कहाँ
जो ख़्यालों पे पहरे डाले वो आँखें हैं कहाँ
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़के चूमेंगे
आसमान, आसमान, आसमान ...
आज़ादियाँ, आज़ादियाँ, आगे ना कभी मिले, मिले, मिले
आज़ादियाँ, आज़ादियाँ, जो छीने वही जी ले, जी ले, जी ले
सुबह की किरणों को रोके जो सलाखें हैं कहाँ
जो ख़्यालों पे पहरे डाले वो आँखें हैं कहाँ
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़के चूमेंगे
आसमान, आसमान, आसमान ...
सुबह की किरणों को रोके जो सलाखें हैं कहाँ
जो ख़्यालों पे पहरे डाले वो आँखें हैं कहाँ
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़के चूमेंगे
आसमान, आसमान, आसमान ...
कहानी ख़त्म है, या शुरुआत होने को है
सुबह नयी है ये, या फिर रात होने को है
कहानी ख़त्म है, या शुरुआत होने को है
सुबह नयी है ये, या फिर रात होने को है
आने वाला वक़्त देगा पनाहें, या फिर से मिलेंगे दोराहे
ख़बर क्या... क्या पता...
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